बांग्लादेश हाई कोर्ट ने इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (ISKCON) पर प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया है। अदालत ने इस मामले को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि बिना ठोस सबूत के इस पर स्वतः संज्ञान नहीं लिया जा सकता। यह फैसला तब आया है जब देश में ISKCON के खिलाफ विरोध प्रदर्शन तेज हो रहे थे। इस विवाद की जड़ महंत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी और उसके बाद देश में उपजे विवादों से जुड़ी हुई है।
महंत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी और विरोध प्रदर्शन
ISKCON के महंत चिन्मय कृष्ण दास को कुछ दिन पहले देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने चटगांव में एक रैली के दौरान भड़काऊ बयान दिए, जो देश की अखंडता के खिलाफ थे। उनकी गिरफ्तारी के बाद ISKCON के समर्थकों और अल्पसंख्यक समुदाय ने पूरे बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शन किए।
प्रदर्शनकारियों का कहना था कि यह गिरफ्तारी धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है। ISKCON के अनुयायियों ने आरोप लगाया कि सरकार अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय की आवाज को दबाने की कोशिश कर रही है।
ISKCON पर बैन की मांग और हाई कोर्ट की सुनवाई
ISKCON को प्रतिबंधित करने की याचिका हाई कोर्ट में दायर की गई थी। याचिका में यह भी मांग की गई थी कि चटगांव और रंगपुर में आपातकाल लागू किया जाए, ताकि बढ़ते विरोध प्रदर्शनों को रोका जा सके।
हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने ISKCON पर सख्त कार्रवाई की अपील की। हालांकि, अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए कहा:
“किसी भी संगठन पर प्रतिबंध लगाने के लिए ठोस सबूत की आवश्यकता होती है। केवल आरोपों के आधार पर इस पर फैसला नहीं लिया जा सकता।”
ISKCON के महंत और भक्त इस फैसले से राहत महसूस कर रहे हैं।
ISKCON का पक्ष और बयान
ISKCON के प्रवक्ता ने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा:
“हम पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन अदालत ने न्यायपूर्ण फैसला दिया। यह लाखों भक्तों के लिए राहत की बात है।”
उन्होंने आगे कहा कि यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए एक बड़ी जीत है।
बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा
बांग्लादेश में हालिया समय में राजनीतिक अस्थिरता और अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़े हैं।
- शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के दौरान हिंसा की घटनाएं तेज हुई हैं।
- अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय को लगातार निशाना बनाया जा रहा है।
हालांकि, सरकार इन घटनाओं को रोकने में असफल साबित हो रही है।
भारत की प्रतिक्रिया और चिंता
भारत ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है।
- विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ इस मामले पर चर्चा की।
- भारत ने बांग्लादेश सरकार से अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील की है।
भारत और बांग्लादेश के सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों को देखते हुए यह मुद्दा दोनों देशों के लिए संवेदनशील है।
बांग्लादेश की सामाजिक स्थिरता पर सवाल
चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी और ISKCON के खिलाफ मामला बांग्लादेश की सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता पर सवाल खड़ा करता है। अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा और सरकार की निष्क्रियता से देश में अस्थिरता का माहौल बन रहा है।
FAQs: ISKCON विवाद से जुड़े सवाल
Q1: ISKCON पर प्रतिबंध की मांग क्यों की गई?
ISKCON के महंत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया था। इसके बाद कुछ समूहों ने ISKCON पर प्रतिबंध लगाने की मांग की।
Q2: हाई कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?
हाई कोर्ट ने बिना ठोस सबूत के ISKCON पर प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया।
Q3: क्या ISKCON के समर्थकों ने प्रदर्शन किए?
हां, महंत की गिरफ्तारी के बाद ISKCON के अनुयायियों ने देशभर में विरोध प्रदर्शन किए।
Q4: भारत ने इस मामले पर क्या कहा है?
भारत ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील की है।
Q5: बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति क्या है?
बांग्लादेश में हाल के वर्षों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं, जो सरकार के लिए चिंता का विषय है।
निष्कर्ष
बांग्लादेश हाई कोर्ट का यह फैसला धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों की जीत है। ISKCON पर प्रतिबंध लगाने की मांग को खारिज करना न्याय का सम्मान करता है। हालांकि, बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता पर सरकार को जल्द ही ठोस कदम उठाने होंगे।